6 समोसे = इंसाफ फ्री! यूपी पुलिस का नया मूल्यसूची रेट कार्ड वायरल

Ajay Gupta
Ajay Gupta

जब कानून के रखवाले बने समोसे के ग्राहक! उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले से आई इस शर्मनाक और हैरतअंगेज़ खबर ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या अब इंसाफ का मूल्य सिर्फ 6 समोसे रह गया है? जी हां, जलेसर थाने की पुलिस ने 14 साल की बच्ची से दुष्कर्म मामले की जांच कुछ इस तरह निपटा दी जैसे शाम की चाय के साथ समोसे खा रहे हों।

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मामला क्या है? और… समोसे कहां से आए?

1 अप्रैल 2019 को जब 14 साल की छात्रा स्कूल से लौट रही थी, गांव का वीरेश नामक युवक उसे खेत में ले गया और दुष्कर्म किया। जब दो लोग मौके पर पहुंचे, तो आरोपी जातिसूचक गालियाँ बकते हुए धमकी देकर फरार हो गया। पीड़िता के पिता ने जब थाने में मामला दर्ज कराने की कोशिश की, तो पुलिस ने अनसुना कर दिया। आखिरकार, अदालत के आदेश पर FIR दर्ज हुई।

पुलिस की “समोसे वाली” जांच: ना गवाह, ना बयान… सीधा क्लोजर!

इसके बाद जो हुआ, वो हास्य और त्रासदी का मिश्रण है। जांच अधिकारी (विवेचक) ने 30 दिसंबर 2024 को अदालत में रिपोर्ट दी कि “मामले में कोई सबूत नहीं मिला।” बस, सबूतों के नाम पर 6 समोसे ज़रूर मिले, जो आरोपी की दुकान से खाए गए। चटनी में डुबोकर उन्होंने पूरे केस को अंतिम रिपोर्ट में बदल डाला।

किशोरी ने दिया बयान, लेकिन FIR में बनी “समोसा चोर”

हद तो तब हो गई जब विवेचक ने FIR में लिखा कि किशोरी ने आरोपी से उधार में समोसे मांगे थे, और जब वो नहीं मिले, तो “बदला लेने” के लिए झूठा रेप केस बना दिया गया। पुलिसिया जांच का ये नया मॉडल अब ‘समोसा आधारित न्याय प्रणाली’ के रूप में इतिहास में दर्ज हो सकता है।

अदालत बोली – “ये जांच नहीं, इंसाफ की हत्या है!”

विशेष पॉक्सो न्यायाधीश नरेंद्र पाल राणा ने इस हास्यास्पद रिपोर्ट को रद्द कर दिया और केस को अब एक परिवाद के रूप में सीधे सुनवाई के लिए दर्ज कर लिया है। न्यायालय ने माना कि गवाहों के बयान तक नहीं लिए गए, पीड़िता के बयान की अनदेखी की गई और पुलिस का रवैया पूरी तरह पक्षपाती था।

पहले भी फटकार खा चुकी थी पुलिस

इतना ही नहीं, 31 अगस्त 2024 को भी अदालत ने पुनः विवेचना का आदेश दिया था, लेकिन पुलिस ने वही रिपोर्ट झाड़-पोंछकर फिर पेश कर दी। लगता है, एटा की पुलिस अब “कोल्ड स्टोरेज इन्वेस्टिगेशन” मोड में काम कर रही है।

जब न्याय की कीमत सिर्फ नाश्ता रह जाए!

कभी सुना था “अंधा कानून” होता है, अब लग रहा है कानून भूखा भी होता है। और जब भूख लगती है तो 6 समोसे खाकर दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों में रिपोर्ट बदल देता है।

क्या अब भी कानून भूख से मरता रहेगा?

क्या ऐसे पुलिस वालों पर कोई कार्रवाई होगी? क्या अब भी हम “बेटी बचाओ” जैसे नारे लगाकर खुद को माफ कर लेंगे? या फिर अब वाकई व्यवस्था के समोसे तलने वालों को जवाबदेह बनाया जाएगा?

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